तू हो आसपास ऐसा तो में नाही केहता ,
पर तुने दिये हुए ये जो लम्हे ही वो हि काफी है ,
कभी थंडी हवा बनकर सुकून देते है , कभी धूप मे छांव बन जाते है ये लम्हे …. 

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कुछ तो बात ही तुम मे 

युं इठलके जो चल पडी हो तुम,
कितने पडाव, कितने मोड , कितने लम्हे,
ना  जाने तुम्हे पुकारते …… 

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मेरा सब अच्छा है
विलायत में मेरा बच्चा है
परदेसी हो तो क्या हुआ
धरतीपुत्र सच्चा है

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वो मुझे सुबह शाम फोन करती है
कहाँ रहते हो तुम ? क्या तुम्हारा नाम ? पूछा करती है
 मुझे उससे बहुत लगने लागा है डर

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